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बुधवार, 5 अप्रैल 2023

एक पौराणिक कथा है

एक पौराणिक कथा है 

जिसके अनुसार भगवान विष्णु अपने वाहन गरुड़ पर बैठ कर कैलाश पर्वत पर गए द्वार पर ही गरुड़ को छोड़ कर भगवान विष्णु खुद शिव से मिलने अंदर चले गए इधर बाहर बैठा गरूर कैलाश घूमने लगा और तब वह.... कैलाश की प्राकृतिक शोभा को देख कर गरुड़ मंत्रमुग्ध हो गए. उनके आश्चर्य की कोई सीमा न रही कि इतना रमणीक स्थान भी कही हो सकता है. इसी समय उनकी नजर एक खूबसूरत छोटी सी चिड़िया पर पड़ी.जो वही कैलाश पर्वत पे ही बैठी थी. चिड़िया कुछ अधिक ही सुंदर थी जिसके कारण बरबरस ही गरुड़ का ध्यान उसकी तरफ आकर्षित होने लगे.उसी समय कैलाश पर यम देव पधारे और अंदर जाने से पहले उन्होंने उस छोटे से पक्षी को आश्चर्य की दृष्टि से देखा.गरुड़ समझ गए

एक पौराणिक कथा है


         उस चिड़िया का अंत निकट है और यमदेव कैलाश से निकलते ही उसे अपने साथ यमलोक ले जाएँगे..... गरूड़ को दया आ गई. इतनी छोटी और सुंदर चिड़िया को मरता हुआ नहीं देख सकते थे.इसलिए उन्होंने एक युक्ति सोची उसे अपने पंजों में दबाया और कैलाश से हजारो कोश दूर एक जंगल में एक चट्टान के ऊपर छोड़ दिया  और खुद वापिस कैलाश पर आ गया.इस तरह गरुड़ जी निश्चिन्त हो गए की अब तो चिड़िया की जान बच जाएगी 

            खैर जब यमदेव बाहर आए तो गरुड़ ने पूछ ही लिया कि उन्होंने उस चिड़िया को इतनी आश्चर्य भरी नजर से क्यों देखा था. यम देव बोले गरुड़ जब मैंने उस चिड़िया को देखा तो मुझे ज्ञात हुआ कि वो चिड़िया कुछ ही पल बाद यहाँ से हजारों कोस दूर एक नाग द्वारा खा ली जाएगी मैं सोच रहा था कि वो इतनी जल्दी इतनी दूर कैसे जाएगी पर अब जब वो यहाँ नहीं है तो निश्चित ही वो मर चुकी होगी  यह सुन के गरुड़ जी समझ गये 
चाहे लाख करो चतुराई विधि का विधान कभी ना जायर खाली.

         तो ऊपर ये प्रसंग देने का क्या मतलब है.कोई कहानी नही सुनाना बल्कि आपको समझाना की नियति अटल है भाग्य में जो लिखा है वो हो कर ही रहेगा. नीचे कुछ और उदहारण से समझते है.भगवान राम का विवाह और राज्याभिषेक दोनों शुभ मुहूर्त देख कर किए गए थे फिर भी न वैवाहिक जीवन सफल हुआ न ही राज्याभिषेक.और जब मुनि वशिष्ठ से इसका उत्तर मांगा गया.तो उन्होंने साफ कह दिया

 सुनहु भरत भावी प्रबल बिलखि कहेहूं मुनिनाथ
हानि लाभजीवन मरण
यश अपयश विधि हाथ

अर्थात - जो विधि ने निर्धारित किया है, वही होकर रहेगा हानि लाभ जीवन मरण यश अपयश सब विधि के अनुसार ही होगा इसी तरह न ही महादेव शिव जी सती की मृत्यु को टाल सके  रामकृष्ण परमहंस भी अपने कैंसर को न टाल सके. न रावण अपने जीवन को बदल पाया न ही कंस. जबकि दोनों के पास समस्त शक्तियाँ थी ओर सब जानते भी थे भविष्य में उनके साथ क्या होगा पर कोई विधि का लिखा ना टाल पाया ऊपर इतना सब लेक्चर देने का बस यही तातपर्य है कि समझिये आपके जीवन मे जो दुख तकलीफ कष्ट पीड़ा यश अपयश इत्यादि सब पहले से ही लिखा जा चुका है उसमे आपके द्वारा किये जा रहे साधना का कोई हाथ ना है
 
        ना दुखो को आपके जीवन मे लाने में ना उसे बढ़ाने में. पर आज के समय मे हर दूसरा साधक कहु तो जीवन में आने वाले कष्टो को तकलीफों को साधना से जोर देता है. ओर उसे लगता है यह अमुक साधना कर रहा हु तो उसके कारण ही मेरे जीवन मे इतना कष्ट हो रहा है  घूम फिर के सब का दोष साधना को ही अंत मे दिया जाता है या इतना साधना कर रहा हु ओर फिर भी जीवन में इतना तकलीफ जरूर कुछ गलत कर रहा हु 

        यह सब समझ कर वो साधक साधना मार्ग से धीरे धीरे विमुख हो जाता है इसलिए ऊपर के उद्धरणों से 2 बात समझ लीजिये. पहली आपके भाग्य में जो लिखा है वो हो के रहेगा.जो दुख तकलीफ है वो आ कर रहेगा.
यानी विधि के विधान को टाला नही जा सकता है किसीभी तरह से ना ओर दुसारा जिस तरह भगवान शिव से ले भगवान राम या अन्य उद्धरणों से जो समझया हु वो सब जानते हुए भी अपने जीवन मे आने आले तकलीफों दुखो को ना रोक पाए तो आप क्या समझते है आप कुछ मंत्र या माला जाप कर अपने जीवन मे आने वाले दुखो तकलीफों को रोक लेंगे.कभी नही
 स्वयम सदगुरुदेव निखिल बोल कर गए है. बेटा जीवन रूप नाव में बैठ कर जब तुम इस संसार रूपी समुद्र को पार करने जाओ.तो कभी ये ना सोचना की तुम्हारे जीवन मे कष्ट और तकलीफ रूपी तूफान नही आएंगे.  तो आएंगे ही मेरा बेटे पर उन तुफानो (दुख) में तुम्हे डूबने नही दूंगा बस इतना तुम जरूर याद रखना

    सो बातो पे गोर करते हुए यह समझिये की साधना आरधना करने का यह मतलब नही की कोई कष्ट ही ना आये आपके जीवन मे वो तो विधि का विधान जो लिखा आपके भाग्य में हो सकता है इस जन्म के होंगे नही तो अगले जन्म के. वो तो होगा ही इसमें साधना को कोई दोष न दे. पुरुषोत्तम राज निखिल निखिल साधक परिवार जय सदगुरुदेव जय माँ भगवती 

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